आध्यात्मिक यात्रा में चौथा चरण
अनुभव:
यह अनुभव कैसे, क्यों, क्या और कहाँ
है?
अनुभव कैसे होता है? एक अनुभव कैसे होता है, इसके बारे में अधिक उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। हम सभी जानते हैं कि विभिन्न वस्तुओं के माध्यम से हमे अनुभव प्राप्त होता है। सभी प्रकार की वस्तुओं, यहां तक कि मानसिक वस्तुओं; जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, मन की विभिन्न श्रेणियां जैसे कि बुद्धि, कल्पना, अहंकार, स्मृति और प्रतिबिंबित चेतना, का भी अनुभव संभव है।
आइए हम जांच करें
कि वास्तव में अनुभव क्या
है। कोई भी अनुभव,
इसे देखना, सूँघना, छूना, खाना, पीना, चलना, आदि क्रिया के
माध्यम से मिलता है।
हम एक साधारण क्रिया
का जाँच करते है,
जैसे की, एक चॉकलेट
आइसक्रीम का सेवन; खाने
के बाद आप क्या
आइसक्रीम खाने का वर्णन
कर सकते हैं? हम
अनुभव का वर्णन नहीं
कर सकते; हम इसके बजाय
आइसक्रीम की विशेषताओं का
वर्णन करते हैं, कि
यह मीठा है, बर्फीला
था। अनुभव की गुणवत्ता को
अच्छे या बुरे रूप
में ढाल सकते
है, लेकिन किसी भी चीज
के अनुभव के बाद उस
अनुभव का वर्णन करना
कठिन है। क्यूंकि यह
केवल एक ज्ञान है, जो ठहर
जाता है।
अनुभव मात्र शुद्ध ज्ञान है। हम वस्तु
के बारे में जान
सकते हैं, लेकिन अनुभव
के बारे में नहीं।
वह एक व्यक्तिगत अनुभव
था; एक ही समय
में अनुभव किए जाने वाले
कई अनुभवों के बारे में
क्या कह सकते है।
क्या वह भी केवल
ज्ञान है? वह अनुभव
भी विचित्र ही है।
उदाहरण के लिए, आप
यह लेख अपने मोबाइल
या लैपटॉप पर पढ़ रहे
हैं, एक सोफे पर
बैठे हुए, अपने पसंदीदा
कोई खाद्य पदार्थ खा रहे हैं।
यहां कई गतिविधियाँ हो
रही हैं, लेकिन क्या
हम उन्हें अलग-अलग अनुभवों
के रूप में जानते
हैं, या क्या यह
एक सम्मिलित अनुभव की तरह अनुभव
करते है?
हम हर तरह के
अनुभव के साथ प्रयोग
कर सकते हैं, संगीत
सुनना, रॉक क्लाइम्बिंग करना,
पसंदीदा या घृणित पकवान
खाते हुए, किसी से
बात करना, आदि। यह मन
द्वारा बनाया गया भ्रम है
इसिलए ऐसा प्रतीत होता
है कि विभिन्न वस्तुएँ
अलग-अलग अनुभव देती
हैं। अनुभव कुछ और नहीं
बल्कि उनके बारे में
जानना है। हम वस्तुओं
को अलग कर सकते
हैं वस्तुओं से प्राप्त अनुभवों
में कभी भी अंतर
नहीं कर सकते। गहराई
से सोचिये …………
यह बहुत महत्वपूर्ण कदम
है, अनुभव कहां हो रहा
है। हालांकि यह हमारे भीतर
हो रहा है, निश्चित ही, स्वाद, ध्वनि,
छवि वास्तव में वहां है
जहां यह आत्मा है?
जब हम किसी वस्तु
को बाहर देखते हैं
तो, उदाहरण के लिए, जब
हम किसी पर्वत की
और देखते हैं, हम केवल
प्रकाश के माध्यम से
हमारी आंखों के द्वारा दर्शाये गए एक आकार और
रंगों को देखते हैं,
और केवल प्रकाश की
एक किरण आंखों में
प्रवेश करती है, और
किसी भी तरह से
एक आकृति हमारे मन में एक छवि
के रूप में बन
जाती है, जो पर्वत
के रूप में हम
उसे जान पाते है।
पर्वत तो केवल नाम
है जो एक विशिष्ट
वस्तु को इस तरह
के आकार और रंग
के साथ दिया गया है।
छवि पहले से ही
अंदर है। जो बाहर
है, उसे कोई कैसे
समझ सकता है, जो
अपने आप से पूरी
तरह अलग इकाई है।
अपने से अलग वस्तु को
अनुभव करना असंभव है।
इसी तरह, यदि आप
दूर से आने वाली
किसी ध्वनि की जांच करते
हैं, तो हम ध्वनि
कहाँ सुनते हैं? यहाँ जहाँ
आत्मा है। आत्मा ही संगीत है
हम इस तरह हर
एक अनुभव को विस्तार से
जाँच करेंगे तो, हम जल्द ही
पायेंगे कि वस्तुएं खुद
में जड़, अचेतन
हैं। कोई भी विशेषता
या गुण आत्मा के द्वारा अनुभव
किए जाने पर ही
वस्तुओं से जुड़ता है।
यह अनुभूति विशुद्ध रूप से अनुभवात्मक
है, इसलिए इसे अभी पाया जा सकता है
यदि प्रयोग और जांच करने
के लिए तैयार है
तो। दृश्य और द्रष्टा, अनुभव
और अनुभवकर्ता के बीच का
भेद मिट जाना, या
कोई भेद न होना,
शांत मन में आसानी से
प्रकट हो जाता है। इसलिए अधिकांश
परंपराओं में मन के शुद्धिकरण को
अद्यात्म का पहला कदम
बताते है।
हालांकि, हर एक क्षण
में, अनुभव और अनुभवकर्ता का
यही संगम है।
इस एकता को साकार
करना ही आत्मज्ञान है
- ब्रह्मज्ञान है, जहां से
वास्तविक यात्रा शुरू होती है।
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