Tuesday, December 29, 2020

Oneness - Experience & Experiencer

The Fourth Step in the Spiritual Journey


Experience:

How, Why, What, and Where is this Experience?    

How does experience happen? Noting much is required to be mentioned about how does an experience happens.  We all know through the various objects. All kinds of objects, even mental objects; as mentioned earlier, various categories of Mind such as Intellect, Imagination, Ego, Memory & Reflected Consciousness, are also capable of experiences. 

एकता - अनुभव और अनुभवकर्ता का संगम - ब्रह्मज्ञान

 आध्यात्मिक यात्रा में चौथा चरण


अनुभव:

यह अनुभव कैसे, क्यों, क्या और कहाँ है?

अनुभव कैसे होता है? एक अनुभव कैसे होता है, इसके बारे में अधिक उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। हम सभी जानते हैं कि विभिन्न वस्तुओं के माध्यम से हमे अनुभव प्राप्त होता है। सभी प्रकार की वस्तुओं, यहां तक कि मानसिक वस्तुओं; जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, मन की विभिन्न श्रेणियां जैसे कि बुद्धि, कल्पना, अहंकार, स्मृति और प्रतिबिंबित चेतना, का भी अनुभव संभव है।

Fear

Why Fear?

Question: Right now, I’m in that stage where the moment I become aware -  I only sense fear. Hence, to brush that feeling away, I become less aware and get back into my dream world. That’s where today’s exercise concluded. I don’t know if this makes any sense to you.

Thought of giving you a little explanation for your feeling of Fear.  

"Being Aware" is the natural state of being.

But we have so caught up in Being Aware of objects that have forgotten our natural state of being.

Awareness is ever-present.

There is a surge of thoughts (like photo frames) with a negligible gap in between, which appears as a movie. In this activity, a story is weaved of self, a personal individual, which is a false identity.  This self-personal identity is you, me, he, she, etc.

And the mind is so conditioned with this false self that in "Being Aware," it seems to be missing, hence the feeling of fear. However, the more "Being Aware" starts happening, the self will go to its place where it belongs and will not unnecessarily interfere with the real experience.

This personal self is required only for operational ease in this apparent world. For the movie to appear as continuous without any gap, it is possible only because of the screen.  Similarly, our world appears as one continuous universe because of this unchanging Awareness, which is the only thing that is present.

Friday, December 25, 2020

Ego

The third step in the Spiritual Journey

What is this ego? It is such a wonder that just thought can create such a powerful illusion, which results in weaving multiple worlds based on this illusionary self.  If we dig deep into this topic, we may find many fascinating theories and explaining the ego-self. In this context, I am sure many of us would have come across a popular theory, that there is just one mind - the universal mind and the individual minds are just reflections of that whole.

World, Mind and Body

 Side note in the Spiritual Journey

Thousands of books have already been written about the world, mind and body. Therefore, there is not much to say about them here, but mention is necessary.

In the play of Maya, the Spiritual journey is also one of the acts amongst many. But one of the best features of this act is that it shows a way out of this Maya.  This game can be played only by Maya's instruments, so it is necessary to know a little about them, but we have to know about these instruments only as much as necessary so that it aids our progression in this journey.  Otherwise, the study of these tools is so exciting and fascinating that it can make us fall into a beautiful trap of Maya, which would demand thousands of birth's effort to come out of it.

What is Self?

The second step in the Spiritual Journey

Soon after examining the steps of knowing self, the next step is to contemplate on this Self.  If this is not the world, body or mind, what is this?

Before we proceed in contemplating on Self, the foremost and crucial aspect is to nullify the assumption of giving a human image to this Self.  Human is one of the varied forms of this Self, so it can be a big spider as well if spiders were to walk in this path of knowing-Self.  Maybe that is happening, who knows, anything is possible in this Maya.  Many Vedanta scholars may disagree with this; I am not here to bring in a new theory of any sort, my only humble approach is to make it clear that when we mention Self, please do not put a human face to it.  

अहंकार - अहम भाव - जीव

 आध्यात्मिक यात्रा में तीसरा चरण 

 यह अहंकार क्या है? यह एक ऐसा अजूबा है जो मात्र एक विचार है परन्तु इतना शक्तिशाली भ्रम पैदा करता है, जिसके परिणामस्वरूप इस संसार में, "मैं व्यक्ति हूँ”, ये मान्यता पैदा होती है  यदि हम इस विषय के गहराई में जाएं  तो हमें कई सिद्धांत मिलते हैं जो इस अहंकार की अवधारणा को स्पष्ट करते हैं। इस संदर्भ में, मुझे यकीन है कि हम में से सभी ने कई लोकप्रिय सिद्दांतों के बारे में सुना होगा,जिसके अनुसार यह मान्यता है कि एकमात्र चित है जिसे विश्व चित कहा जाता है, और यह व्यक्तिगत चित उस विश्व चित का केवल प्रतिबिंब हैं, एक छोटा सा प्रतिरूप है

Thursday, December 24, 2020

शरीर , मन और अहम्

 

आध्यत्म यात्रा के पक्ष - शरीर , मन और अहम्

 

विश्वमन और शरीर के बारें में पहले ही हज़ारों किताबे लिखी जा चुकी है। इसलिए यहां उनके विषय में कहने को ज़्यादा कुछ नहीं है परन्तु उल्लेख आवश्यक है।  

माया के इस खेल में आद्यात्मिक यात्रा भी उसकी अन्य रचनओं में से एक है। मगर एक सर्वोत्तम विशेषता इस यात्रा की यह है की यह इस माया से बहार निकलने का रास्ता बताती है, और इस खेल को माया के साधन से ही खेला जासकता हैं, इसलिए इसके बारें में थोड़ा जानना आवश्यक है। मगर उतना ही जानना है जितना हमें अपनी यात्रा में प्रगति दिलाये नहीं तो इन साधनो का ज्ञान इतना रोमांचक है की हमे एक खूबसूरत चक्रव्यूह में फंसा देता है। जहाँ से निकलने के लिए जनम जनम का प्रयत्न लग जाता है। 

Wednesday, December 23, 2020

क्या है यह आत्मा?

आध्यात्मिक यात्रा में दूसरा चरण


एक बार जब हम स्वयं को जानने के चरणों की जांच शुरू करते हैं, तो अगला स्पष्ट कदम इस आत्मा पर मनन करना है। अगर यह आत्मा विश्व, शरीर या मन नहीं है तो क्या है?

इससे पहले कि हम स्वयं पर विचार करने में आगे बढ़ें, सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है की इस आत्मा को एक मानवीय छवि देने की धारणा का अंत करना है। मानव इस आत्मा के विविध रूपों में से एक है, इसलिए यह एक बड़ा मकड़ी भी  हो सकता है अगर  मकड़ियां भी आत्मज्ञान शुरू कर दे तो। संभव है यह भी हो रहा है, आप तो जानते ही है की इस माया में कुछ भी हो सकता है। मेरा मत यहां किसी भी प्रकार के नए सिद्धांतो को स्पष्ट करना नहीं है, मेरा एकमात्र विनम्र आशय यह स्पष्ट करना है कि जब हम आत्मा का उल्लेख करते हैं, तो कृपया एक मानवीय चेहरा रखें।

Tuesday, December 22, 2020

आध्यात्मिक यात्रा


वास्तव में किसी भी यात्रा का सारांश करना मुश्किल है। कोई भी यात्रा विभिन्न अनुभवों का एक संग्रह है। इन सभी अनुभवों को यादें या कहानियां कहा जा सकता है। लेकिन एक विशिष्ट अंतर्निहित कारक इन यात्राओं को प्रेरित करता है - वह है - मैं यह चाहता हूँ / मुझे यह चाहिए  यह चाह धन से लेकर आत्म-साक्षात्कार तक कुछ भी हो सकती है। 

हालांकि बाहरी रूप से ऐसा प्रतीत होता है कि आत्म-साक्षात्कार की मांग भी किसी वस्तु की मांग जैसे ही है  हम कोई भी मांग करते है तो वो किसी कमी के आभाव से ही शुरु होता है। 

Knowing-Self

 The first step in Spiritual Journey


All of us are born scientists and, when we go out in search of Self, we begin the process exactly the same way as we do in search of other objects in the outer world or for something called "my self."

No wonder why thousands of births are also not sufficient to end this journey. And even after that, if we don't find anything (because chances are high :-)), in dejection, we claim and establish that there is no such thing as Self, and the world outside is the only truth.  No one can be blamed for such a claim because we were systematically taught that what cannot be seen doesn't exist.

आत्मज्ञान


आध्यात्म का पहला चरण

वैज्ञानिकों की भांति, हम जब आत्मज्ञान की खोज में निकलते हैं, तो आत्मा को भी बाहरी जगत में ढूँढ़ते है, या फिर ऐसे कह लो की जिस तरह किन्ही वस्तुओं को ढूढ़ते है, उसी तरह "मेरी आत्मा" नाम की वस्तु को ढूंढ़ने लग जाते हैं इसीलिए हज़ारों जन्म लग जाते है या फिर वो लोग इतने दुखी हो जाते है की यह साबित कर देते है की आत्मा नाम की कोई चीज़ है ही नहीं, केवल मात्र यह जगत है, जो साक्षात प्रतीत होता है। क्यूंकि हमें थो यही सिखाया गया है की जो दिखता नहीं वो है ही नही।

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