आध्यात्मिक यात्रा में तीसरा चरण
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगी कि इन सिद्धांतों को जानना अच्छा है। फिर भी, उनकी उपयोगिता केवल तब है जब हम अपने प्रयोगों के माध्यम से इसे अनुभव कर सकें। विभिन्न गुरुजनो द्वारा कई अभ्यास उपलब्ध हैं और अनुशंसित किये गए हैं। मैंने स्वचेतना अभ्यास किया और इसीलिए उस अभ्यास के आधार पर मिले अनुभवो का यहां उल्लेख कर रही हूँ।
इस अभ्यास को करते हुए, आप जल्दी ही यह देख पाएंगे कि शरीर की गतिविधियाँ स्वयं ही हो रही हैं; जैसा कि हम सभी जानते हैं, यह इतनी अच्छी तरह से अनुकूलित है, सारी गतिविधियाँ सहजता से होती है। जब हम कोई भी कार्य करते हुए कर्तापन का भाव लाते है तो सहजता से होने वाली सारी गतिविधियां भी एक पहाड़ काटने के सामान दिखाई देती हैं और विभिन्न समस्याएं पैदा करती हैं। हम में से ज्यादातर लोग इसी कर्तापन के विचार भंवर में फसे रहते है। यह बहुत गहरी जड़ों वाला मतारोपण है; इसलिए समय के साथ ही इस कर्तापन से मुक्ति मिलेगी ।
इस अभ्यास के दौरान, पहला अद्भुत क्षण वह अहसास है जब यह साफ़ दिखाई देता है की जीव नहीं सोचता, लेकिन विचार इस तरह से उत्पन्न होते हैं वह केवल एक भ्रम देता है कि यह जीव स्वयं सोच रहा है।
एक बार जब हम खुद को किसी एक विचार से जोड़ लेते हैं, तो कई जुड़े विचार पानी की धारा की तरह बहने लगते हैं। कहा जाता है कि ये विचार स्मृति क्षेत्र (विश्व चित) से आते हैं। यह स्मृति क्षेत्र एक सामूहिक क्षेत्र है जो इस विश्व के संपूर्ण प्राणियों को बांधता और जोड़ता है।
एक आकर्षक बात है कि ये विचारों की धारा एक फिल्म में फ्रेम की तरह होते हैं, हालांकि होते तो अलग-अलग हैं लेकिन एक ही कहानी की तरह दिखाई देते हैं। निरंतर अभ्यास और दृढ़ संकल्प से, इस अभ्यास के द्वारा, विचारों की धारा को केंद्रित किया जा सकता है, और एक पूर्णता के स्तर तक पहुंचा जा सकता है जहां कोई "व्यक्ति" वास्तव में "सोचता है"।
इस चित के चेतना ही मनुष्यों को अन्य प्रजातियों से भिन्न करती है। पूर्णता के इस स्तर पर ही जीव का चित विश्व चित से जुड़ता है और बड़ी बड़ी साधनाये सिद्ध हो पाती है।
इसलिए कोई भी जीव इस विश्व में कुछ नहीं करता और न कुछ कर सकता है। इस विश्व में जो कुछ भी होता है वह समय की ज़रुरत के अनुसार होता है, कोई भी
परिवर्तन माया (प्रकृति) द्वारा संचालित होता है, जो जीव के माध्यम से प्रसारित होता है और विभिन्न अनुभव संभव हो जाते हैं।
आत्मज्ञान के साथ निरंतर मनन अभ्यास के बाद, एक और महान रहस्योद्घाटन अपने आप होता है कि जीवन अपने आप हो रहा है, और मैं इसे देख रहा हूं और अनुभव कर रहा हूं। इस प्रतीति की समाप्ति पर, जीव विभिन्न अनुभवों से गुजरता है। वे निश्चित रूप से अध्ययन के लिए आकर्षक हैं लेकिन केवल मनोरंजन के उद्देश्य से काम करते हैं। ये अनुभव विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत और हर एक जीव के मतारोपण पर आधारित हैं; इसलिए, कोई सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता। यह विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत है। इसलिए आध्यात्मिक अनुभव चर्चा का विषय नहीं है, लेकिन इसे समझने के लिए और इसे इस यात्रा में प्रगति के लिए केवल अपने गुरु को ही बताया जा सकता है।
जैसे पहले भी कहा गया है की इस माया के खेल में केवल इस सत्य को महसूस करना ही हर एक जीव का लक्ष्य है। यह सब केवल माया का एक नाटक है; वही जीव चुनती है, साधना करवाती है और अंत में इस ज्ञान से परिचित भी करवाती है।
व्यक्ति स्वयं कोई प्रयास नहीं कर सकता, न व्यक्ति है, न कर्ता, यह ज्ञान केवल ईश्वरीय अनुग्रह के माध्यम से ही प्राप्त किया जाता सकता है।
धन्यवाद!
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