Thursday, December 24, 2020

शरीर , मन और अहम्

 

आध्यत्म यात्रा के पक्ष - शरीर , मन और अहम्

 

विश्वमन और शरीर के बारें में पहले ही हज़ारों किताबे लिखी जा चुकी है। इसलिए यहां उनके विषय में कहने को ज़्यादा कुछ नहीं है परन्तु उल्लेख आवश्यक है।  

माया के इस खेल में आद्यात्मिक यात्रा भी उसकी अन्य रचनओं में से एक है। मगर एक सर्वोत्तम विशेषता इस यात्रा की यह है की यह इस माया से बहार निकलने का रास्ता बताती है, और इस खेल को माया के साधन से ही खेला जासकता हैं, इसलिए इसके बारें में थोड़ा जानना आवश्यक है। मगर उतना ही जानना है जितना हमें अपनी यात्रा में प्रगति दिलाये नहीं तो इन साधनो का ज्ञान इतना रोमांचक है की हमे एक खूबसूरत चक्रव्यूह में फंसा देता है। जहाँ से निकलने के लिए जनम जनम का प्रयत्न लग जाता है। 


माया (प्रकृति), इस मन और शरीर का नियंत्रण करती है। आत्मज्ञान के लिए किसी भी विशेष आसन या अनुशासन की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए केवल तीव्र मुमुक्षत्व एक मात्र योग्यता है।   यह कथन शास्त्रों से अलग हो सकता है, पर यह केवल अनुभव पर निर्भर है और हर एक साधक का अपनी अलग विचार धारा हो सकती है। 

मन और शरीर इस संसार में काम करने के लिए बहुत उपयोगी है, परन्तु उनकी अपनी सीमा भी है जिसको समझने के लिए इनकी व्याख्या इस प्रकार की गई है-

शरीर-

शरीर एक खूबसूरत और जटिल यन्त्र है, जिसके कारण मनुष्य विविध शक्तिओं को सिद्ध कर पाया है। इस यन्त्र के अंगों में भी स्मृति बसती है, परंतु यह यन्त्र चित की चेतना के बिना कोई कार्य नहीं कर सकता। इसकी न्यूनतम देखभाल आवश्यक है, जो हर एक व्यक्ति के लिए अलग है। यह यंत्र प्रकृति की सबसे विशेष देन है। हालांकि यह सिर्फ एक यन्त्र है, लेकिन मानव इस यन्त्र की नक़ल नहीं कर सकता,  विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं यह प्रयोग अभी चल रहा है 

मन -

मन में उत्पन होने वाले विचारों को हम विभिन्न श्रेणियों में बाँट सकते है। जैसे कि - बुध्दि, कल्पना शक्ति, स्मृति, अहम् और चित। मन की ये श्रेणियाँ इतनी पराक्रमी है की वे अपना एक अलग अस्तित्व बना लेती है। और इसी कारण वश अहम् भाव, जो केवल एक विचार है, अलग व्यक्ति के भ्रम को जन्म देता है इसकी जांच न करने और समाज द्वारा पूरी तरह से विपरीत मतारोपण की विफलता ने सबसे बड़ी सीमा बनाई है और यह दुनिया की अधिकांश समस्याओं का कारण भी है।

इस यात्रा में इस अहम्, जो केवल एक विचार है, उसके बारे में भी थोड़ा मनन आवश्यक है। यह अहम् भाव या फिर कर्ताभाव कर्म हो जाने के उपरांत प्रकट होता है। आप इस विचार की जाँच करें क्यूंकि इस विचार या इस अहम् भाव की चर्चा हमारी यात्रा का अगला चरण होगा।  

 

धन्यवाद 

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