ज्ञानहीनता क्या है? जो कुछ भी ज्ञान के रूप में पाया है उसका कोई तातपर्य नहीं है। केवल यही ज्ञात होता है की इस ज्ञान से कुछ भी बदल नहीं सकता। जो जैसे चल रहा है वो वैसे ही चलेगा।
ज्ञान मार्ग में स्पष्ट रूप से यह बताया जाता है, अन्य मार्गों में यह ज्ञान अपने आप समय आने पर हो ही जाता है।
मेरा इस मार्ग में होना मुझे कोई श्रेष्ट व्यक्ति नहीं बनाता। यह तो मात्र एक खेल है, जिसमे कोई भी कहीं भी हो सकता है, और वह पूर्ण रूप से दैवित्व है।
आज यह जान लिया है की मेरा कुछ करना या न करना केवल मेरा कथन है, उसमे कोई सत्य नहीं है। सत्य अगर है तो, उसके विभिन्न रूप है, उन रूपों में कोई भेद भाव नही। बुद्ध और हिटलर भी उसी सत्य के एक सामान रूप है। मैं मेरी गुरु भी और मैं ही मेरी शिष्य भी। इसीलिए मुझे कुछ करना ही नहीं है।
समर्पण क्या है ? यही की, अगर मैं हूँ तो भी मुझे कुछ करना नहीं है। मेरे द्वारा जो कुछ सिद्द होना है वो अपने आप होरहा था, होरहा है, और होजायेगा। मैं और आप अलग नहीं है, केवल परतीत हो रहे है। मैं मेरी विषेशताओं और दुर्बलताओं के सात ही सम्पूर्ण हूँ और दैवित्व भी हूँ। आप और कृष्णा भी भिन्न नहीं है, केवल प्रतीत हो रहा है। यह भिन्नताएं किसको प्रतीत हो रहा है, उसीको जो प्रतीत कर रहा है।
आत्मा समर्पण कह देने से आत्म समर्पण नहीं होता। और कुछ करके भी वो नहीं होता।
प्रकृति के इस खेल में जो जब होना है वो हो जाता है। अगर कोई गुरु है तो उसमे उसका कोई व्यक्तिगत साधना नहीं है। वो भी माया के खेल का एक भाग ही है। और आपको यह ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ तो इसका मतलब यह नहीं है की आप कोई कम दैवित्व है। आप और आपके गुरु एक सामान है। माया के खेल में ऐसा प्रतीत हो रहा है की गुरु के पास कोई विशेष ज्ञान है और आपके पास नहीं। सफ़ेद का अस्तित्व काले से है, अगर कला नहीं तो सफ़ेद भी नहीं। गुरु और शिष्य भी अनुभवकर्ता और अनुभव के भांति है। उनमे कोई भेद नहीं, उनमे भेद केवल मात्र कल्पना है, एक रोमांचक कहानी के कदापात्र है। दैवित्व और मनुष्य भी केवल कल्पना है। द्वैत और अद्वैत भी मनुष्य की रचनाएँ है। यहां क्या है और क्या नहीं है उसे सिद्ध नहीं किया जा सकता। केवल एक कार्य किया जासकता है की आप जैसे है जहाँ है वहीँ खुश रहिये या दुखी रहिये, दोनों मैं कोई अंतर नही। यहां करने को कुछ भी नहीं है।
मेरेको ये ज्ञान प्राप्त होगया है के मैं कटपुतली हूँ। इस ज्ञान से मैं सूत्रदार नहीं बनजाति, मगर ऐसा कह सकते है की मैं ज्ञानी कटपुतली हूँ। :-)
अब और कुछ कहने को रहा नहीं है।
ReplyDeleteअती सुन्दर लेख है। धन्यवाद यह साझा करने के लिए।
🙏🙏🙏
धन्यवाद् आशुजी
ReplyDelete🙏
अति सुन्दर विचार साझा किया है आपने, ज्ञानहीनता -आत्मसमर्पण के विषय पर।🙏🙏🌺🌺
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