Monday, February 1, 2021

आत्मज्ञान क्यों?

 

सुख के सभी अनुभव, या तो दुःख के साथ आते हैं या फिर प्रयास से मिलते हैं। सुख का अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। इस द्वैत जगत में किसी भी प्रक्रिया का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। सुख और दुःख एक साथ मिलते हैं। इसलिए सुख के प्रति स्वार्थ और दुःख के प्रति घृणा मूर्खता हैं। 

शिशु का आगमन सुख परन्तु शिशु के जनम की प्रक्रिया दुख: धन और समृद्धि सुख परन्तु धन को एकत्रित करना दुख:। अगर ऐसा हैं तो सुख के प्रति इतना स्वार्थ कैसे मनुष्य का स्वभाव बन गया हैंसुख के प्रति स्वार्थ ही इस संसार मे पीड़ा का कारण है। 

इस मतारोपण की स्तिथि से कैसे बहार आया जा सकता है?  

इस प्रश्न का उत्तर केवल आत्मज्ञान ही है। आत्मज्ञान से क्या होगा?

आत्मज्ञान से मनुष्य अपनी वास्तविकता जान सकता हैं। आत्मज्ञान से द्वैत जगत अद्वैत जगत बन जाता है। जो वस्तुएं भिन्न प्रतीत होती हैं उनके सत्य का भी बोध होता है। अद्वैत - निराकार, निरुप, निष्क्रिय, निर्गुण प्रज्ञ, विभिन्न रूप, क्रिया, गुण और अकार में परवर्तित होता हुआ स्वप्न के भांति दिखाई देता है। स्वप्न में आनेवाली चरित्र का क्या अस्तित्व और उसके नियंत्रण में क्या हैजो स्वप्न देख रहा हैं वो भी निष्क्रिय हैं। बस सबकुछ होते हुए भी कुछ भी नही। और जो स्वप्न का व्यक्ति है वह भी निष्क्रिय है।  

इस मूल ज्ञान को ही आत्मज्ञान कहते है। इस सरल ज्ञान से जीवन को एक नयी दृष्टिकोण मिलता है, जो जीवन व्यतीत करने मे सहायता करता है। इस ज्ञान से कोई ब्रह्मण या भगवन या संत नहीं बन जाता है, परन्तु जहाँ भी जैसे भी है वहीं पर उस स्तिथि मे ही अनादित हो जाता है। सम्पूर्णता का अनुभव कर लेता है, जो जीवन भर उसके साथ रहती है।  

 

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