सुख
के सभी अनुभव, या तो दुःख के साथ आते हैं या फिर प्रयास से मिलते हैं। सुख
का अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। इस
द्वैत जगत में किसी
भी प्रक्रिया का स्वतंत्र अस्तित्व
नहीं है। सुख और
दुःख एक साथ मिलते हैं।
इसलिए सुख के प्रति
स्वार्थ और दुःख के
प्रति घृणा मूर्खता हैं।
शिशु
का आगमन सुख परन्तु शिशु के जनम
की प्रक्रिया दुख:। धन और समृद्धि
सुख परन्तु धन को एकत्रित
करना दुख:। अगर ऐसा हैं
तो सुख के प्रति
इतना स्वार्थ कैसे मनुष्य का
स्वभाव बन गया हैं? सुख के प्रति
स्वार्थ ही इस संसार
मे पीड़ा का कारण
है।
इस
मतारोपण की स्तिथि से
कैसे बहार आया जा
सकता है?